प्रकृति देबी की बंदना
हे माँ प्रकृति देवी तुझे, शत-शत मेरा प्रणाम है ।
जितनी सुंदर सुबह
तेरी, उतनी ही सुंदर शाम है।।
हे माँ प्रकृति देबी
तुझे,...........................................
मन लुभावन रंग से
रंगी , फूलों की तेरी क्यारियां ।
ऊँचे गगन से बात
करतीं, हैं सदा यह पहाड़ियां
।।
बहतीं नदियाँ पत्थरों
संग, कर रहीं हैं अठखेलियाँ ।।।
मिल रहा इस दृश्य से, दृष्टि को आराम है
।
जितनी सुंदर सुबह तेरी, उतनी
ही सुंदर शाम है
।।
हे माँ प्रकृति देवी तुझे,....................................................
दूर तक फैला
गगन है, चाँद-तारों
से भरा ।
ओढ़ कर धानी
चुनरिया, सो रही है वसुंधरा ।।
लग रहा है दूर
छितिज पर, आकाश धरती से मिला ।।।
फूलों के ओढ़ो पर गिरके, ओस करती विश्राम है ।
जितनी सुन्दर सुबह तेरी, उतनी सुंदर शाम है
।।
हे माँ प्रकृति देवी
तुझे, .................................................
तेरी हवा, तेरे जल
से, मिल रही जीवन को गति ।
रोशनी सूरज की तेरी, दे रही जीवन को गति ।।
ये पेड़-पौधे तट-समुन्दर,
दे रहे जीवन को गति ।।।
खुद जियो जीने दो
सबको, यह तेरा पैगाम है ।
जितनी सुंदर सुबह
तेरी, उतनी सुंदर शाम है ।।
हे माँ प्रकृति देवी तुझे, ...................................
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